[There are at least 19 translations of the Kural in Hindi. The first
translation was probably that of Khenand
Rakat, published in 1924. In 1958, the
University of Madras came out with a translation by
Sankar Raju
Naidu. Being India's official language of communication, it has obviously
attracted the most number of translations among all north Indian
languages. Surprisingly many of these translations are in verse! One of
the last translations to appear is
Kural kavitā valī, a translation by
Ananda Sandhidut
which
appeared in 2000.
The translation presented here is that of
Vekatakrishnan who translated it first in 1964. The second
edition came after more than 30 years, thanks to N.
Mahalingam of Sakti Finance Ltd,
Chennai.
My wife K.T. Shahnaz typed all the 1330
couplets in less than a month.]
तिरुक्कुरल के तीन भाग हैं-
धर्म,
अर्थ और काम ।
उनमें क्र्मशः 38, 70
और
25 अध्याय हैं ।
हर एक अध्याय में 10 ‘कुरल’
के हिसाब से समूचे
ग्रंथ में 1330 ‘कुरल’
हैं । यह मुक्तक
काव्य होने पर भी विषयों के प्रतिपादन में एक क्रम-बद्धता
है और विषयों की व्यापकता विषय-सूची
को देखने से ही ज्ञात हो सकती है । जबकि धर्म-कांड
में ईश्वर-स्तुति,
गार्हस्थ्य,
संन्यास,
अध्यात्म,
नियति का बल आदि
व्यक्तिगत आचारों और व्यवहारों पर विचार किया है,
अर्थ-कांड
में राजनीति के अलावा,
जिसके अंतर्गत
सासकों का आदर्श,
मंत्रियों का कर्तव्य,
राज्य की अर्थ-व्यवस्था,
सैन्य आदि आते हैं,
सामाजिक जीवन की
सारी बातों पर विचार किया गया है । दो हज़ार वर्षों के पहले तिरुवल्लुवर के हृदय
सागर के मंथन के फलस्वरूप निकले हुए सुचिन्तित विचार रत्न इतने मूल्यवान हैं कि
बीसवीं शताब्दी के इस अणु युग में भी इनका महत्व और उपयोगिता कम नहीं हुएं हैं और
इसमें संदेह नहीं है की चिर काल तक ये बने रहेंगे । धर्म और अर्थ-कांड
नीतिप्रधान होने पर भी उनमें कविता की सरसता और सौन्दर्य हैं ही । फिर काम-कांड
की तो क्या पूछना?
संयिग और विप्रलंब शृंगार
की ऐसी हृदयग्राही छटा अन्यत्र दुर्लभ है । मुक्तक काव्य की तरह जहाँ
एह-एक
‘कुरल’
अपने में पूर्ण
हैं वहाँ सारे कांड में एक सुंदर नाटक का सा भान होते है । इस नाटक में प्रधान
पात्र नायक और नायिका हैं वहाँ सारे कांड में एक सुंदर नाटक का सा भान होता है
।इस नाटक में प्रधान पात्र नायक और नायिका हैं और उनकी सहायता के लिये एक
सखी और एक सखा
का भी उपयोजन हुआ
है । पूर्वराग,
प्रथम मिलन,
संयोगानन्द,
विरह-दुःख
फिर पुनर्मिलन के साथ यह सरस कांड समाप्त होता है । तिरुक्कुरल महात्म्य के इस
संक्षिप्त दर्पण में एक 'केरल'
का भी उद्धरण में
न दे सका । कारण एक तो स्थानाभाव है । दूसरा उद्धरण के लिये किसको लूँ अथवा किसको
छोडूँ ?
यही समस्या थी । विज्ञ
पाठक के कर-कमलों
में सब ही । प्रार्थना है कि अध्ययन और मदन कर लें ।
दोहा छंद में तिरुक्कुरल अनुवाद करने का उद्देश्य
यह है कि पद्यानुवाद से मूल ‘कुरल’
की तरह नीतियो को कंठस्थ करने में सुगमता होगी । दोहा छंद कुरल
के समान छोटे होने और हिन्दी में नीति संबधी संत साहित्य अधिकतर उसी में रहने के
कारण मैंने अनुवाद के लिये इसको उपयुक्त समझा । अनुवाद करते समय यथाक्रम इन बातों
को ध्यान में रखा गया है:- १. मूल का भाव ज्यों का त्यों रहे । २. शब्द विन्यास
जहाँ तक हो सके मूल के अनुरूप हो । ३. भाषा खडी बोली और प्रसाद गुण पूर्ण हो । ४.
दूसरी भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने योग्य यह अधिकृत अनुवाद रहे ।
भारतीय भाषाओं और विश्व की कई भाषाओं में तिरुक्कुरल का अनुवाद हो चुका है ।
विशेषतः कई अनुवाद हिन्दी में हो चुके है । फिर भि यह पहला अनुवाद है जो सीधे मूल
ग्रन्थ से दोहे में किया गया है । तिरुक्कुरल के प्रसिद्ध टीकाकार श्री परिमेलषगर
की व्याख्या के आधार पर प्रायः भावों का प्रतिपादन हुआ है । पंद्रह बीस वर्षों से
ऐसा अनुवाद करने का विचार मेरे मन में उठता था और बार बार कार्यारंभ करके छोड
देता ता । आखिर तिरुच्चिरापल्लि के तिरुक्कुरल प्रचार संघ के उत्साही व्यवस्थापक
श्री गो. वन्मीकनाथजी से,
संयोग से,
मेरा परिचय हुआ ।
उन्होने न केवल मुझे यह अनुवादक रने केलि ये प्रेरित किया परंतु मूल तिरुक्कुरल
के भावों को ठीक ठीक समझ कर अनुवाद करने में अपने बहुमूल्य सुझाओं से मेरा बडा
उपकार किया । उनकी सतत प्रेरणा मुझे न मिलती तो मैं इस काम में प्रवृत्ता न होता
। एतदर्थ मैं उनका बडा आभार मानता हूँ ।
कारैक्कुडि,
|
विनीत
|
अक्तूबर सन्
1966
|
एम.
जी. वेंकटकृष्णन
|
(Source: M.G. Venkatakrishnan (Translator in
Hindi), 1998. Thirukkural. Publisher:
Sakthi Finance Ltd., Chennai)
|
Here in Andaman many people wants Hindi Version of our திருக்குறள். Where from we get the book in Hindi?
ReplyDeleteThere are at least a dozen translations in Hindi, but many will be out of print now. You can try at Bharatiya Jnanpith, New Delhi.
DeleteThere are at least a dozen translations in Hindi, but many will be out of print now. You can try at Bharatiya Jnanpith, New Delhi.
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